04-07-2013, 10:13 PM
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Re: इधर-उधर से
नारी (आलेख)
(यह आलेखवर्ष 1991 में सर्वप्रथम किरोड़ीमल कालेज की पत्रिका में छपी और उसके बाद कई अन्यपत्र-पत्रिकाओं में इसने प्रवेश पाया था।यह नारी के प्रति मेरे विचारों कि पुष्टि करता है और मुझे उनके उत्थान की ओर कार्य करने को प्रेरित करता है। मैं अपनी पूजनीया माँ को जी-जान से प्रेम करता हूँ और उनके सम्मान में यह आलेख समर्पित करता हूँ।)
जय हिंद । जय भारत। नारी
न जाने कितने विचारक नारी केविषय में अपने-अपने विचार प्रामाणिकता अथवा बिना प्रमाण के ही समाज के सामने रख चुके हैं। वस्तुतः विचारकों के विचार प्रामाणिकता के बिना भी तर्क की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
इस बारे में शास्त्रों में कहा गया है, ”तर्क्यतेऽनेनेति तर्कः प्रमाणम्“ अर्थात् जिसके द्वारा प्रमेय आदि के बारे में बताना उद्देश्य नहीं है। परन्तु इससे यह सिद्ध तो हो ही जाता है कि जहाँ प्रमाण की अपेक्षा है, वहाँ तर्क निराधार हो जाते हैं। किन्तु प्रमाण केवल प्रत्यक्ष हो, यह अनिवार्य नहीं है। अतः सब प्रकार के अनुमान आदि पर भी विचार करना पड़ता है।
एक बार महाकवि भर्तृहरि ने नारी केविषय में अपनी जिज्ञासाशांत करने के उद्देश्य से एक संन्यासी से पूछा, "महात्मन्, नारी क्या है ?"
संन्यासी ने हँसकर कहा - "राजन्, नारी में सब कुछ है और कुछ भी नहीं है। श्रृंगार है उसमें, वैराग्य है, नीति भी ... वह गणिका है, पतिव्रता है, पत्नी है, माँ है, बहिन है, साथी है, आदिशक्ति है और म्लेच्छ भी ... क्या नहीं है।"
पुनः एक बार अत्यंत ज्ञानी राजा भोज ने माघ पंडित से अन्य प्रश्नों के क्रम में एक यहप्रश्न भी पूछा कि संसार में क्षमतावान् कौन है। तब महाज्ञानी पंडित माघ ने बताया कि इस चराचर जगत् में दो ही क्षमतावान् हैं - एक पृथ्वी और दूसरी नारी।
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