Quote:
Originally Posted by आकाश महेशपुरी
अगर सत्ता न हिल जाये तो फिर ये खून कैसा है
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किसी की रोटियाँ छीनें भला कानून कैसा है
हमारा हक नहीं देता तो अफलातून कैसा है
सभी हम मर रहे लेकिन सियासत मौज है करती
अगर सत्ता न हिल जाये तो फिर ये खून कैसा है
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बहुत ज़बरदस्त कविता है. आपने आम जनता द्वारा देखा और भोगा गया यथार्थ इन पंक्तियों में प्रस्तुत किया है. धन्यवाद, आकाश जी.