Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
आलोचक की व्यंग्योक्ति
एक बार आचार्य रामचंद्र शुक्ल और लाला भगवानदीन बाजार में एक शरबत की दुकान पर पहुंचे। दुकानदार ने वहां नए जमाने के हिसाब से महिलाओं को परिचारिका रखा हुआ था। जब दोनों ने शरबत पी लिया तो लालाजी ने पूछा, ‘कितना दाम हुआ?’ परिचारिका ने मुस्कुराते हुए जब दाम दस आने बताया तो तीन गुना दाम सुनकर लालाजी विचलित हुए। उन्होंने आचार्यजी की ओर प्रश्*नवाचक दृष्टि से देखा तो आचार्य जी अपनी सनातन गंभीर मुद्रा में बने रहे और बोले, ‘दे दीजिए दस आने, इसमें शरबते-दीदार की कीमत भी शामिल है।’
इसी प्रकार एक बार एक अध्यापक शुक्लजी के पास आए और स्कूली पाठ्यक्रम में लगी हुर्ह एक कविता ‘चीरहरण’ को निकालने की मांग करने लगे। उन्होंने कहा, ‘यह कविता एकदम निकाल देनी चाहिए। भला आप ही बतलाइये, इसे बालकों को कैसे पढ़ाया जाएगा?’ शुक्लजी ने शांत भाव से कहा, ‘परेशान क्यों होते हैं? कह दीजिएगा कि कृष्णजी स्काउटिंग करने गए थे।’
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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