Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘ तब केकरा परवाह है, डरो हिययै की किकरो से, प्यार किया तो डरना क्या।’’
रीना का यह एक साहसिक अंदाज था जिसने मुझे हिम्मत दिया। मैं रीना को कुछ समझा पाता इससे पहले ही रूठ गई कि कहीं तुम्हारे मन में भी तो पाप नहीं। रीना को मैं यह कैसे समझा पाता कि मन में पाप रहता तो अभी कुछ क्षण पूर्व जहां था वहां जीवन के अलौकीक आनंद में गोंता लगा रहा होता पर मेरे मन में पाप होने की बात जैसे ही रीना ने कही वैसे ही मन के किसी कोने में यह आवाज आने लगी कि कहीं यह बात ही तो सच नहीं। मेरे मन में पाप नहीं होता तो उसे बता ही देता पर छुपाने का यह बहाना, बहाना ही तो है। मैं भी सोंचने लगा शायद ऐसा कुछ है। खैर रीना चली गई थी रूठ कर, पर मैं जानता था कि वह कैसे मानेगी। रीना को मनाने और रिझाने का कई तरीका हमेशा आजमाता रहा और इसी में से एक तरीका आज अहले सुबह चार बजे हाथ आ गया। हुआ यूं कि सुबह सुबह कॉलेज के मैदान में दौड़ने जाता था जिसमें कई दोस्त साथ भी होते थे पर आज सुबह जैसे ही घर से निकला देखा रीना के घर में हंगामा मचा हुआ है। कौतुहलवश चला गया।
‘‘की होलई ?’’
‘‘सांप है’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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