Re: विजेता
संजय कुमार, प्रोफेसर एंड डायरेक्टर, सेंटर फॉर द स्टडीज़ ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़
युवाओं व दलितों के वोट ने दिलाई जीत
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि भाजपा न केवल सबसे आगे रही, बल्कि इस पार्टी ने भारत के चुनावी इतिहास में सबसे बड़ी जीत हासिल की है। भाजपा ने सबसे ज्यादा सीटें हासिल करके नया इतिहास रचा। 2009 के लोकसभा चुनावों से तुलना की जाए तो इस बार बीजेपी170 सीटें आगे रही। अलाइज (सहयोगी पार्टियों) के बदौलत पार्टी ने करीब 300 सीटें अपने नाम की और एनडीए को 334 सीटें मिलीं।
ये कांग्रेस की सबसे शर्मकार हार है। उन्हें केवल 62 सीटें मिली। मात्र 20 फीसदी लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया। नतीजों को देखें तो पता चलता है कि कुछ क्षेत्रीय पार्टियों जैसे तृणमूल कांग्रेस, एआईएडीएमके, बीजेडी की पकड़ अपनी सीटों पर मजबूत रही। लेकिन कुछ क्षेत्रीय पार्टियों जैसे जेडी (यू) या समाजवादी पार्टी या बीएसपी को अपने राज्य में खास सहयोग या वोट नहीं मिले। ये पार्टियां ज्यादा सीटें हासिल करने में विफल रही।
भाजपा की जीत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहली बार है कि किसी नॉन कांग्रेस पार्टी को बहुमत प्राप्त हुई है। भाजपा ने न केवल गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा सीटें हासिल की। लेकिन उन राज्यों में भी भाजपा आगे रही जहां उनकी पकड़ या उपस्थिति कमज़ोर थी जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, असम। आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल में भाजपा ने कुछ सीटें या वोट अपने नाम किए। ये जीत सिर्फ इसलिए जरूरी नहीं कि भाजपा केंद्र सरकार बनाएगी, लेकिन इससे पता चलता है कि भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है।
इस जीत से ये डिबेट भी खत्म हो जाएगी कि भारत में मोदी की लहर (मोदी वेव) थी भी या नहीं। अब भी कुछ विश्लेषक होंगे जो भाजपा की इस जीत को आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे। इसे मोदी लहर ही कहेंगे कि किसी पार्टी ने खुद बहुमत हासिल की है। 1998 के लोक सभा चुनाव में भाजपा का शेयर सिर्फ 25.6 फीसदी था। अगर कोई प्रधानमंत्री उम्मीदवार चुनावी कैप्टन की सारी जिम्मेदारी खुद उठाएं, 540 से ज्यादा रैली करे, देशभर में पांच हजार मीटिंग करे, तो ये कहना गलत नहीं कि मोदी ने अपने पूरे चुनावी कैप्टन से मोदी लहर बनाई।
भाजपा की जीत का एक कारण और भी है। पहले इसे अर्बन अपर क्लास की पार्टी माना जाता है, लेकिन अब की बार भाजपा ने उन वर्गो को भी अपने साथ जोड़ा जो सिर्फ कांग्रेस या क्षेत्रीय पार्टियों को ही वोट डालते थे। नतीजों से स्पष्ट है कि जितनी पॉपुलर भाजपा शहरी इलाकों में है, उतनी ही ग्रामीण चुनावी क्षेत्रों में।
पहले के नतीजों में नजर डालें तो भाजपा को शहरों में ज्यादा वोट मिलते थे और ग्रामीण क्षेत्रों से कम वोट आते थे। इस बार के चुनाव में भाजपा ने शहरों और ग्रामीण इलाकों में लगभग एक जितने वोट मिले हैं। पहले भाजपा ग्रामीण इलाकों के ओबीसी या दलित में ज्यादा पॉपुलर नहीं थी, लेकिन इस बार भाजपा ने उन्हें भी साथ जोड़ा। कुछ ओबीसी वोटरों ने अपने राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों को वोट दिया जैसे बिहार में यादवों ने आरजेडी को और यूपी में समाजवादी पार्टी को समर्थन दिया। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी वोट भाजपा को मिले। इसमें भी 45 फीसदी लोअर ओबीसी और 33 फीसदी अपर ओबीसी ने भाजपा को वोट डाले।
पहले भाजपा को कभी दलित वोट नहीं मिलते थे, लेकिन इस बार ऐसे नहीं हुआ। दलितों ने भी भाजपा को वोट दिए। ये भी कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा एक मात्र पार्टी है जिसे दलितों का वोट मिला।
इसे के साथ 18 से 22 साल के युवाओं का वोट भी भाजपा को मिला। इसका कारण भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हैं। पहले युवा वोटर कांग्रेस और भाजपा में बंट जाते थे, लेकिन अब की बार यूपी, एमपी, महाराष्ट्रा में युवाओं का वोट भाजपा को मिला।
इस बार चुनाव में लगभग 60 फीसदी अपर क्लास ने भाजपा को वोट दिया। 1998 और 1999 के लोक सभा चुनाव में 50 फीसदी से कम अपर क्लास का वोट भाजपा को मिला था। इस बार भाजपा को वोट देने वालों में शिक्षित वोटर्स का आंकड़ा ज्यादा है।
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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