Re: मुक्त होने के लिये
अहं और आनंद
आनंद सहज दशा है।
यह सारा जगत् आनंद से भरा है।
तुम दुःख पैदा करते हो।
और तुम्हारे दुःख पैदा करने का जो पहला आधार है, वह अहंकार है।
मैं हूं–बस तुम सिकुड़े ।
मैं हूं कि तुम छोटे बने।
कहां विराट थे, जब मैं का भाव नहीं होता,
तब यह सारा अस्तित्व तुम्हारा है; यह सारा आकाश तुम्हारा है।
जैसे ही मैं-भाव आया, तुम छोटे हो गए, दीन हो गए, क्षुद्र हो गए।
इस छोटी-सी देह में बंध गए।
देह में भी जिनको लगता है काफी बड़े हैं,
वह छोटी-सी खोपड़ी में समा गए हैं।
बस उनकी खोपड़ी में ही उनका मैं रहने लगा।
इतनी छोटी जगह में इतने विराट को समाने की कोशिश करोगे,
दुःख न पैदा होगा तो क्या होगा?
असंभव को करने की कोशिश कर रहे हो। फिर शिकायतें उठती हैं।
(ओशो)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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