Re: इधर-उधर से
अन्ना कैरेनिना : एक असाधारण किताब
ओशो का नजरिया
[अपने अनेक विरोधाभासों के बीच विभिन्न विषयों पर ओशो की मूल्यवान टिप्पणियाँ उनके विचारक रूप की छवि प्रस्तुत करती है. टॉलस्टॉय के विश्व-प्रसिद्ध उपन्यास “अन्ना कैरेनिना” को लेकर की गयी उनकी टिप्पणी को नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है]
लियो टॉलस्टॉय की अन्ना कैरेनिना बहुत खुबसूरत उपन्यास है। तुम हैरान होओगे कि मनपसंद किताबों में मैं उपन्यास को क्यों सम्मिलित कर रहा हूं। क्योंकि मैं दीवाना हूं। मुझे अजीबोगरीब चीजें अच्छी लगती है। अन्ना कैरेनिना मेरी प्रिय किताबों में एक है। मुझे याद है मैंने उसे कितनी बार पढ़ा है।
यदि मैं सागर में डूब रहा होऊंगा और विश्व के लाखों उपन्यासों में से मुझे एक चुनना होगा तो मैं अन्ना कैरेनिना चुनूंगा। इस खूबसूरत किताब के साथ रहना सुंदर होगा। उसे बार-बार पढ़ना होगा, तो ही आप उसे महसूस कर सकते है। सूंघ सकते है। और स्वाद ले सकते है। असाधारण किताब है यह।
लियो टॉलस्टॉय एक असफल संत रहा, जैसे महात्मा गांधी असफल संत रहे। लेकिन टॉलस्टॉय महान उपन्यासकार था। महात्मा गांधी ईमानदारी का शिखर बनने में सफल रहे और आखिर तक बने रहे। इस सदी में मैं किसी और आदमी को नहीं जानता जो इतना ईमानदार हो। जब वे लोगों को पत्र लिखते थे: योर्स सिंसयरली, तब वे सचमुच ईमानदार थे। जब तुम लिखते हो, ‘’सिंसयरली योर्स’’ तब तुम जानते हो, और हर कोई जानता है कि सब बकवास है। बहुत कठिन है। लगभग असंभव—वस्तुतः ईमानदार होना।
लियो टॉलस्टॉय ईमानदार होना चाहता था। लेकिन हो न सका। उसने भरसक कोशिश की। मुझे उसकी कोशिशों से पूरी सहानुभूति है। लेकिन यह धार्मिक आदमी नहीं था। उसे कुछ और जन्म रूकना होगा। एक तरह से अच्छा है कि वह मुक्तानंद जैसा धार्मिक आदमी नहीं था। नहीं तो हम ‘’रिसरेक्शन, वॉर एंड पीस, अन्ना कैरेनिना, जैसी अत्यंत सुंदर एक दर्जन रचनाओं से वंचित रह जाते।
Last edited by rajnish manga; 02-12-2013 at 11:36 AM.
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