Re: इधर-उधर से
ग़ज़ल
जा इजाज़त है दूरियां रख जा
अपने होठों पे सिसकियाँ रख जा
चुभ गयी तो न अश्क ठहरेंगे
टूटे ख्वाबों की किरचियाँ रख जा
तू अगर साथ रह नहीं सकता
मेरे हिस्से की हिचकियाँ रख जा
ज़िन्दगी तो मुझे भी जीनी है
कुछ तो अपनी निशानियाँ रख जा
चांद निकले तो मुंह छुपाने को
अपनी जुल्फों की बदलियाँ रख जा.
ज़र्द फूलों का है बदन उन पर
अपने होठों की सुर्खिया रख जा
(अतीक़ इलाहाबादी)
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