Re: गुण और कला
लावण्या जी ने विचार विमर्श हेतु एक अच्छा विषय रखा और सभी से इस विषय पर विचार आमंत्रित किये. विचार विमर्श में रफ़ीक जी, डॉ श्री विजय, श्रीमान empty mind, दीप जी व पुष्प सोनी जी ने हाग लिया और बड़े सुंदर विचार प्रस्तुत किये. ‘गुण तथा कला’ विषय पर तर्क-सम्मत निष्कर्ष निकाले गये.
मोटे तौर पर यह स्वीकार किया गया कि गुण व्यक्ति में जन्मजात होते हैं जबकि कलाओं का विधिवत विकास किया जाता है – सीख कर अथवा साधना के रास्ते पर चल कर. कुछ गुणों को हम यत्नपूर्वक कला में तब्दील कर भी कर सकते हैं.
इसी कड़ी में दूसरा विचार यह प्रस्तुत किया गया कि किसी मनुष्य का ‘सीधापन’ वास्तव में गुण है या कुछ और. भाई empty mind ने बताया कि सीधा व्यक्ति वह है जिसमे छल कपट नहीं होता. यही कारण है कि उसे कोई भी आसानी से ठग लेता है. इस पर लावण्या जी ने निष्कर्ष निकाला कि सीधापन किसी व्यक्ति का गुण न होकर कमजोरी है.ऐसा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के गुण-दोष की समीक्षा नहीं कर पाता इसलिये ठगा जाता है. तात्पर्य यह है कि सीधापन किसी व्यक्ति का गुण नहीं, दोष है और यह उसकी बेवकूफ़ी है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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