Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
मैंने उनके इस मंत्र को गुरू मंत्र मान कर अपनाया और स्वाध्याय में जुट गया। आर्थिक तंगी थी पर मन में डाक्टर बनने का सपना पाल लिया। जीवविज्ञान की रूची थी सो उसमें पढ़ई करने लगा। प्रो. रिजमी सर के बातें का असर यह हुआ कि इंटर का परीक्षा आते आते मैं अपने क्लास के अच्छे विद्यार्थी की श्रेणी में आने लगा। यह बाकया भी यादगार है। इंटर का अंतिम दिन था और परीक्षा का फॉर्म भराने लगा था। रिजमी सर जगरूक शिक्षकों में थे सो उन्होंने प्रायौगिक कक्षा में अंतिम दिन क्विज़ प्रतियोगिता का आयोजन किया।
लड़के लड़कियों को दो भागों में बांट दिया। एक भाग में मैं और कुछ कॉलेज के विद्यार्थी थे और दूसरे भाग में रिजमीं सर से ट्युशन में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी। क्विज़ शुरू हुई तो मेरे ग्रुप से एक मैं और एक वहीं छात्रावास में रहने वाला राजू प्रश्नों का जबाब दे रहे थे और दूसरे ग्रुप में सारे लड़के तेज थे पर क्विज के अंत में जब परिणाम आया तो मेरा गु्रप जीत गया और उस जीत का श्रेय मुझे मिला। उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई थी। इसी बीच दूसरे दिन मैं बाजार से आ रहा कि कि पान की गुमटी के पास रिजमी सर, देव बाबू सहित करीब आधा दर्जन प्रोफेसर मेरी ओर इशारा करते हुए कुछ बातें कर रहे थे और मैं जैसे ही नजदीक आया मुझे बुला लिया गया। मैं चूँकि संकोची स्वभाव का था इसलिए नर्वस था। जाने क्या कहेगें। रिजमी सर ने सीधे सवाल दागा-
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 27-08-2014 at 10:10 PM.
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