Re: पानी की कहानी
कविवर। बहुत दिन बाद इस सूत्र पर आने का अतिशय खेद है। हमने आपको यह तमगा ऐसे ही नहीं दिया है और इसे इस तरह लौटाने का आपको मेरे विचार से कोई हक नहीं है, जब तक कि आप कोई और सुपात्र खोज कर स्वयं इसे उसके सुपुर्द नहीं कर दें। अब यह आपके ऊपर है कि आप कितनी जल्दी अपनी शिष्य मंडली फोरम पर तैयार करते हैं और उनमें से किसी एक श्रेष्ठ को यह तमगा सौंप कर बुजुर्गियत के आसन पर विराजमान होते हैं। ... लेकिन तब तो आपका रूतबा और भी ऊंचा होगा ... यानी मैं तो आपको हमेशा यूंही सलाम करता रहूंगा। आपकी यह सृजन यात्रा सदा जारी रहे और हम इसका लुत्फ़ इसी तरह उठाते रहें, यही कामना है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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