Re: एशेज सीरीज 2013
इंग्लैंड के खिलाफ शर्मनाक एशेज हार के बाद सभी तरफ ऑस्ट्रेलियाई टीम की आलोचना हो रही है। कभी दबंगों की तरह जीत दर्ज करने वाले कंगारू अब भीगी बिल्ली की तरह कांप रहे हैं। जीत का मुंह देखे तो जैसे उन्हें अरसा बीत गया।
पिछले साल यही ऑस्ट्रेलियाई टीम अपने घर पर टीम इंडिया को पटखनी देकर बल्लियों उछल रही थी। कप्तान माइकल क्लार्क खुद को उस जीत से इतना महान समझने लगे कि सभी टीमें उन्हें नौसिखुआ लगने लगीं। अपने ही सीनियर खिलाड़ियों को बाहर करने में उन्हें जैसे गर्व महसूस हो रहा था।
हेय पोंटिंग - तुम अच्छा नहीं खेल रहा मेट। प्लीज नए लड़कों को आने दो।
मिस्टर क्रिकेट हसी - अब आप भी फिसड्डी हो रहे हो। टीम में रहना है तो कुछ बड़ा करो मेट।
इन सब दलीलों से उन्होंने सीनियर्स को बाहर कर युवा टीम खड़ी कर ली। यही नहीं, जो गेंदबाज उनकी बात नहीं सुनते वे उन्हें रोटेशन पॉलिसी के तहत बाहर कर देते। पांच विकेट लेने के तुरंत बाद मिचेल जॉनसन को बाहर बैठान की गलती कोई अहम में अंधा कप्तान ही कर सकता है।
इसी अकड़ में क्लार्क कुछ शर्मनाक रिकॉर्ड अपनी टीम के नाम लिख गए।
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