Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
राष्ट्रकवि और द्राक्षासव
एक बार राष्ट्रकवि मैथिलीषरण गुप्त अपने दिल्ली आवास से बाहर गए हुए थे। पीछे से राय कृष्णदास आए और साथ में द्राक्षासव की एक बोतल भी ले आए। जब तक राय साहब रहे गुप्तजी बाहर थे। राय साहब जाते वक्त खाली बोतल मेज पर छोड़ गए। गुप्तजी लौटे तो बोतल देखकर मन प्रसन्न हो गया। उन्होंने बोतल उठाई तो खाली बोतल पाकर निराश हो गए। क्रोध में गुप्तजी ने एक कविता लिख डाली-
कृष्णदास! यह करतूत किस क्रूर की?
आए थके हारे हम यात्रा कर दूर की।
द्राक्षासव तो न मिला, बोतल ही रीती थी!
जानते हमीं हैं तब हम पर जो बीती थी!
ऐसी घड़ी भी हा! पड़ी उस दिन देखनी-
धार बिना जैसे असि, मसि बिना लेखनी!
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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