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Old 08-05-2015, 03:19 PM   #17
Rajat Vynar
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Talking Re: मेरी कलम से.....

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Originally Posted by pavitra View Post
इस गतिहीन , दिशाहीन जीवन को मिले नयी उडान प्रिय
तुम आ जाओ , अब आ जाओ हैं अधर में मेरे प्राण प्रिय....

इस बैरी दुनिया ने,
किये बहुत से सितम मुझ पर,
पल-पल तरसी, पल-पल तडपी,
हुई बहुत बेचैन मगर,
मिले सुकून तब ही जब धरूँ तुम्हारा ध्यान प्रिय,
तुम आ जाओ , अब आ जाओ हैं अधर में मेरे प्राण प्रिय....

अपने मन की आँखों से ,
किया तुम्हारा दीदार बहुत ,
तुमसे मिलने की चाहत में ,
मैंने किया इन्तजार बहुत ,
नाम तुम्हारा जुडे तो ,मिले मुझे पहचान प्रिय ,
तुम आ जाओ , अब आ जाओ हैं अधर में मेरे प्राण प्रिय....

जग से ,जग के क्या शिकवे करूँ?
तुम मिलो तो क्यों किसी से डरूँ ?
साथ तुम्हारा पाऊँ तो चढूँ नये सोपान प्रिय ,
अब आ जाओ ,बस आ जाओ हैं अधर में मेरे प्राण प्रिय....



गजब की निराली कविता है, पवित्रा जी। एकदम परफेक्ट! आपने अपनी नई कविता से फ़ोरम में कहर ढ़ा दिया है। वस्तुत: आपने तो मेघदूत लिखने वाले कालिदास का भी कान काट लिया। कालिदास ने ‘मेघदूत’ में यक्ष की ‘विरह-व्यथा’ का प्रभाव उत्पन्न करने के लिए सौ से ऊपर पेज लिखे थे, किन्तु ‘विरह-व्यथा’ के इस प्रभाव को इस कविता में मात्र चन्द पंक्तियों में सम्पूर्णता के साथ व्यक्त कर दिया गया है। अद्भुत!! इस कविता को पढ़कर हमें इतना अधिक सदमा पहुॅंचा है कि प्रसंशा करने के लिए हमारे पास शब्दों के भण्डार में अकाल पड़ गया है। क्षमा चाहता हूॅं। बधाइयॉं।
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