Re: कुतुबनुमा
जो कहा, उस पर अमल करें सांसद
संसद के साठ वर्ष पूर्ण होने के मौके पर आयोजित विशेष सत्र में जिस तरह से प्रधानमंत्री समेत वक्तव्य देने वाले सभी सदस्यों ने संसद को सर्वोच्च मानते हुए जो भावनाएं व्यक्त की, वह निश्चित रूप से हमारे लोकतंत्र के लिए एक अच्छा संकेत है। सदस्यों ने कार्यवाही में बार-बार बाधा पहुंचाए जाने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता जताई, साथ ही दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संसद के आधिपत्य का संरक्षण किए जाने पर भी जोर दिया। सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत बताई, जिससे संसद की कार्यवाही बाधित नहीं हो और चर्चा के माध्यम से मुद्दों का समाधान निकाला जाए। यह तो तय है कि कई बार सदन में कई मुद्दों पर उत्तेजना बढ़ जाती है, जिसके कारण कार्यवाही बाधित होती है और प्रणव मुखर्जी ने भी माना कि इसमें हमारे दल के लोग भी होते हैं और दूसरे दलों के लोग होते हैं, लेकिन अगर कामकाज बाधित होता है, तब हम अपनी बात नहीं रख पाते। हमें ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत है, जिससे सदन का कामकाज बाधित नहीं हो; लेकिन लगता है कि विपक्ष कहता कुछ है और करता कुछ है। रविवार को हुई इस गहन चर्चा के बावजूद विपक्षी सदस्यों ने सोमवार को दोनों सदनों में केन्द्रीय मंत्री पी. चिदम्बरम के एक मामले को लेकर शोर किया और सदन की कार्यवाही भी दो बार स्थगित करनी पड़ी। राज्यसभा में भाजपा के बलबीर पुंज चिदम्बरम के एयरसेल मामले को उठाने लगे, तो सभापति डॉ. हामिद अंसारी ने कहा कि यह मामला शून्यकाल में उठाया जाना चाहिए, लेकिन पुंज ने एक नहीं सुनी और बार-बार चिदम्बरम का मामला उठाने लगे। प्रश्नकाल बाधित हो गया और सदन की कार्यवाही पर भी इसका असर पड़ा। इस पर संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने कहा- कल ही हमने कसमें खाई हैं। आज तो ऐसा न कीजिए। अपना धैर्य मत खोइए। तब जाकर पुंज ने अपना स्थान ग्रहण किया। कुल मिलाकर संसद सदस्यों को अब यह तो देखना ही होगा कि उनकी करनी और कथनी में अंतर न हो। निश्चित रूप से संसद हमारे लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था है और यहां जिन भी विषयों पर चर्चा होती है वह न केवल मूल्यवान होती है, बल्कि उस पर अमल भी होता है। ऐसे में सभी सदस्यों, खासकर विपक्ष को संसद की गरिमा का ध्यान रखना ही चाहिए। यहां अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय आचरण का स्मरण किया जाना चाहिए कि किस तरह वे 'सिर्फ विरोध के लिए विरोध' नहीं कर अच्छे कार्यों के लिए सत्ता पक्ष की सदैव प्रशंसा भी किया करते थे और यही वह सबसे बड़ी वज़ह थी कि जब भी वे कोई प्रतिकूल टिप्पणी करते थे, तो सारा देश उसे गंभीरता से लेता था ! आज जरूरत यही है कि प्रत्येक संसद सदस्य उसी आचरण का अनुसरण करे !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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