Re: कुतुबनुमा
अपनों के ही दबाव में फंसती भाजपा
इन दिनों भाजपा में जो कुछ भी हो रहा है, उससे तो यही लगता है कि यह दल अपने ही नेताओं के दबाव के दलदल में फंसता जा रहा है। गुरूवार को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मुंबई में शुरू हुई बैठक से ऐन पहले जिस तरह से कार्यकारिणी के आमंत्रित सदस्य संजय जोशी ने इस्तीफा दिया, उसने साफ कर दिया कि पार्टी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और राजस्थान में प्रतिपक्ष की नेता वसुंधरा राजे के कितने दबाव में है। कई दिनों से यह चर्चा तो थी कि पार्टी प्रमुख नितिन गडकरी से अपनी नाराजगी और अपने धुर विरोधी संजय जोशी की कार्यकारिणी की बैठक में मौजूदगी के चलते मोदी इस बैठक में नहीं आएंगे, लेकिन इन चर्चाओं पर सच्चाई की मुहर उस वक्त लग ही गई, जब जोशी के इस्तीफे के कुछ ही घंटे बाद मोदी ने यह ऐलान किया कि वे राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने जा रहे हैं। मोदी ने गत वर्ष दिसंबर में नई दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी इसलिए हिस्सा नहीं लिया था कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रचार में गडकरी ने संजय जोशी को शामिल किया था। मोदी ने तब विधानसभा चुनाव में भी प्रचार में हिस्सा नहीं लिया था अर्थात मोदी बार-बार भाजपा में अपना वर्चस्व दिखाने में सफल हो रहे हैं और पार्टी प्रमुख कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। इसके पीछे गडकरी की क्या मजबूरी है, यह तो वे खुद या भाजपा ही जाने, लेकिन इस घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया कि पार्टी अब तक जिस अंदरूनी अनुशासन के लिए जानी जाती थी, उस नाम की कोई चीज अब वहां नहीं रह गई है। पार्टी को इस पर विचार करना चाहिए कि वे क्या परिस्थितियां हैं, जिनके कारण बुधवार को उत्तराखंड में उनके विधायक किरण मंडल ने पार्टी छोड़ कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा तो कर ही दी और विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया, ताकि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा उनकी सीट से चुनाव लड़ सकें। अब तो यह जगजाहिर हो चुका है कि भाजपा में दबाव की राजनीति हावी होती जा रही है और क्षेत्रीय नेता अपने निजी लाभ के लिए किसी भी सीमा तक जा रहे हैं। कर्नाटक में जो हुआ और अब तक हो रहा है, उससे भी यह लगने लगा है कि पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा बेलगाम हो चुके हैं और पार्टी के मुखिया उन पर नियंत्रण में नाकाम हो रहे हैं। खुद येदियुरप्पा ने भी कुछ दिनों पहले कहा था कि वे पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने नहीं जाएंगे। कार्यकारिणी की बैठक में कल हुआ घटनाक्रम और भी चिंतनीय है ! येदियुरप्पा ने नरेंद्र मोदी को पार्टी का प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की मांग कर डाली और सुषमा स्वराज और लालकृष्ण आडवानी के बारे में सूचनाएं आईं कि वे पार्टी की रैली में नज़र नहीं आएंगे, इससे कयास लगाए गए कि पार्टी पर गडकरी और मोदी की पकड़ मज़बूत हो गई है, लेकिन ऐसा मान लेना अभी जल्दबाजी होगा ! पार्टी के आधार रहे नेताओं को किनारे लगा कर कोई भी संगठन आज तक जनता का मन नहीं जीत सका है, इतिहास इसका गवाह है ! ज़ाहिर है कि अगर भाजपा को अगले लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना है, तो उसे अपने नेताओं को अनुशासन का पाठ पुनः पढ़ाना होगा !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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