Re: श्रीयोगवशिष्ठ
संसारसुखनिषेध वर्णन
रामजी बोले, हे मुनीश्वर! जैसे कमलपत्र के ऊपर जल की बूदें नहीं ठहरतीं वैसे ही लक्ष्मी भी क्षण भंगुर है । जैसे जल से तरंग होकर नष्ट होती हैं वैसे ही लक्ष्मी वृद्धि होकर नष्ट हो जाती है । हे मुनीश्वर! पवन को रोकना कठिन है पर उसे भी कोई रोकता है और आकाश का चूर्ण करना अति कठिन है उसे भौ कोई चूर्ण कर डालता है ओर बिजली का रोकना अति कठिन है सो उसे भी कोई रोकता है, परन्तु लक्ष्मी को कोई स्थिर नहीं रख सकता । जैसे शश की सींगों से कोई मार नहीं सकता और आरसी के ऊपर जैसे मोती नहीं ठहरता, जैसे तरंग की गाँठ नहीं पड़ती वैसे ही लक्ष्मी भी स्थिर नहीं रहती । लक्ष्मी बिजली की चमक सी है सो होती है और मिट भी जाती है ।
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