Re: श्रीयोगवशिष्ठ
हे मुनीश्वर! परम दुःख का कारण अहंकार है । जब अहंकार का नाश हो जाता हो तब दुःख का भी नाश हो जाय । हे मुनीश्वर! यह जो मैं राम हूँ सो नहीं और इच्छा भी कुछ नहीं, क्योंकि मैं नहीं तो इच्छा किसको हो? और इच्छा हो तो यही हो कि अहंकार से रहित पदकी प्राप्ति हो । जैसे जनेन्द्र को अहंकार का उत्थान नहीं हुआ वैसा मैं होऊँ ऐसी मुझको इच्छा है । हे मुनीश्वर! जैसे कमल को बरफ नष्ट करता है वैसे ही अहंकार ज्ञान का नाश करता है! जैसे व्याध जाल से पक्षी को फँसाता है और उससे पक्षी दीन हो जाते हैं वैसे ही अहंकार रूपी व्याध ने तृष्णारूपी जाल डाल कर जीवों को फँसाया है उससे वह महादीन हो गये हैं जैसे पक्षी अन्न के दाने सुखरूप जानकर चुगने आता है फिर चुगते चुगते जाल में फँस बन्धन से दीन हो जाता है वैसे ही यह जीव विषयभोग की इच्छा करने से तृष्णारूपी जाल में फँसकर महादीन हो जाता है ।
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