View Single Post
Old 09-12-2010, 08:25 PM   #17
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: सप्तम सोपान उत्तरकाण्ड श्लोक(श्रीरामचर

चौ.-सासुन्ह सबनि मिली बैदेही। चरनन्हि लागि हरषु अति तेही।।
देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता।।1।।


जानकीजी सब सासुओं से मिलीं और उनके चरणों लगकर उन्हें अत्यन्त हर्ष हुआ। सासुएँ कुशल पूछकर आशिष दे रही हैं कि तुम्हारा सुहाग अचल हो।।1।।

सब रघुपति मुख कमल बिलोकहिं। मंगल जानि नयन जल रोकहिं।।
कनक थार आरती उतारहिं। बार बार प्रभु गात निहारहिं।।2।।


सब मातएँ श्रीरघुनाथजीका कमल-सा मुखड़ा देख रही हैं। [नेत्रोंसे प्रेमके आँसू उमड़े आते हैं; परन्तु] मंगलका समय जानकर वे आँसुओंके जलको नेत्रोंमें ही रोक रखती हैं। सोनेके थाल से आरती उतारती हैं और बार-बार प्रभुके श्री अंगोकी ओर देखती हैं।।2।।

नाना भाँति निछावरि करहीं। परमानंद हरष उर भरहीं।।
कौसल्या पुनि पुनि रघुबीरहि। चितवति कृपासिंधु रनधीरहि।।3।।


अनेकों प्रकार की निछावरें करती हैं और हृदय में परमानन्द तथा हर्ष भर रही हैं। कौसल्याजी बार-बार कृपाके समुद्र और रणधीर श्रीरघुवीर को देख रही हैं।।3।।

हृदय बिचारति बारहिं बारा। कवन भाँति लंकापति मारा।।
अति सुकुमार जुगल मेरे बारे। निसिचर सुभट महाबल भारे।।4।।


वे बार-बार हृदय में विचारती हैं कि इन्होंने लंका पति रावणको कैसे मारा ? मेरे ये दोनों बच्चे बड़े ही सुकुमार हैं और राक्षस तो बड़े भारी योद्धा और महान् बली थे।।4।।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote