Re: प्रेम.. और... त्याग...
[QUOTE=Rajat Vynar;528346]नवीनतम विद्युत देशों और ‘सामाजिक-आर्थिक’ समस्याओं पर विचार विमर्श करने के लिए बने मंच ‘तर्क-वितर्क’ में आपके एक शक्तिशाली सूत्र को देखकर अतीव प्रसन्नता का अनुभव हुआ. आपके सूत्र पर अभी तक किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की. अतएव यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट है कि आपका सूत्र कितना सशक्त है. हार्दिक बधाई. वस्तुतः इस सूत्र पर टिप्पणी करना कोई साधारण बात नहीं है. निःसंदेह यह विषय ‘आर्थिक-सामाजिक’ समस्या से सम्बन्धित है. अतः इसके लिए इस क्षेत्र में माहिर ‘वैज्ञानिकों’ की राय लेनी होगी. इस शक्तिशाली विषय पर कहने के लिए बहुत कुछ है, इसलिए आगे भी वार्ता जारी रहेगी.[/Q
बहुत बहुत धन्यवाद के साथ आपका अभिवादन करते हुए प्रसन्नता व्यक्त करतीहू की आपने इस सूत्र की शक्ति को पहचाना समझा और आपने मंतव्य व्यक्त किये ... प्रेम शब्द ही एक अथाह सागर है रजत जी जिसमे गहरे में जाकर मोती निकालने पड़ते हैं और ,इसके लिए विचार की जरुरत पड़ेगी ही ... रही बात त्याग की तो त्याग तो आज के ज़माने में बहुत कम लोगो में मिलता है क्यूंकि हरेक को आपने स्वार्थ का मायाजाल बांधे हुए है किसी को पैसा बांध रखे है और किसी को अपनी उन्नति के लिए सिरफ़ खुद को देखना है .. अब इन बन्धनों से हटकर जो आगे निकले निस्वार्थ होकर, सबकी सोचे एइसे तो इस समाज में विरले ही पाए जाते हैं ....
बाकि हाँ अपना ये छोटा सा मंच कहूँ या परिवार कहूँ (माय हिंदी फोरम ) जो है वो शायद निस्वार्थ लोगो से ही बना हुआ है यहाँ एक पारिवारिक वातावरण बन जाता है जब लोग दुसरो को आगे बढ़ता देखते हैं और खुश होते हैं.
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