Re: प्रेम.. और... त्याग...
आपने सही कहा कि प्रेम एक व्यापक शब्द है , परन्तु आज जब भी प्रेम की बात हो तो सिर्फ स्त्री-पुरुष के बीच के प्रेम की ही चर्चा होती है , और वहीँ तक सीमित हो जाता है ये शब्द।
प्रेम किसी भी वस्तु से जीव से हो सकता है। प्रेम के अनेक रूप हैं।
त्याग भी प्रेम का ही रूप है , सबसे शुद्ध रूप। त्याग वहीँ होता है जहाँ प्रेम अपनी चरम सीमा पर हो। जहाँ प्रेम नहीं वहां त्याग नहीं होता वहां समझौता होता है। जैसे कि मुझे कोई चीज़ छोड़नी पड़ रही हो ना चाहते हुए भी , तो वो त्याग नहीं होगा। त्याग वहां होता है जहाँ व्यक्ति ख़ुशी से कोई चीज़ छोड़े। और किसी वस्तु के छूटने पर भी जब हमें दुःख न हो अपितु ख़ुशी हो तब वो त्याग बनता है। क्यूंकि ये ख़ुशी उस वस्तु के हमारे पास से चले जाने की नहीं बल्कि जिसके लिए हमने वो वास्तु छोड़ी उसके लिए कुछ भी कर सकने की होती है।
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