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Old 20-09-2014, 11:06 AM   #7
soni pushpa
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Red face Re: प्रेम.. और... त्याग...

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Originally Posted by rajnish manga View Post
सोनी जी, आपके सूत्र का फलक सीमित होते हुये भी असीमित है. प्रेम अनादि है और अनंत भी. हमने अनेक स्थानों पर महापुरुषों के कथन पढ़े व सुने हैं जो मानते हैं कि प्रेम ईश्वर का ही विस्तार है. जहां प्रेम है वहाँ ईश्वर है. भारतीय दर्शन व संस्कृति में कण कण में ईश्वर होने की अवधारणा रखी गयी है अतः यह हमारा कर्तव्य है कि हम प्राणिमात्र से प्रेम करें, किसी का जी न दुखायें.

संत कबीर का दोहा भी तो इसी प्रेम का संदेश देता है:

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ भया न पंडित कोय
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय

प्रेम के विषय पर फोरम पर अन्यत्र भी चर्चा की गयी है. उसके बारे में और इस चर्चा के "त्याग" पक्ष पर विचार विमर्श को कुछ अंतराल के बाद आगे बढ़ायेंगे. तब तक अलविदा.
धन्यवाद रजनीश जी , आपने आपने अमूल्य विचार प्रगट किये ,.. और आपने संत कबीर के दोहे को लिखकर प्रेम के अपार महत्व को भी समझाया . जी हाँ भगवान भी प्रेम के बस में हैं . जहाँ मीरा, नरसी मेहताऔर विदुर शबरी के प्रेम के बस होकर ही जूठे बेर खाय ., मीरा की रक्षा की और विदुर घर भाजी पाई ., और eise हजारो उदहारण है हमारे एतिहासिक ग्रंथों में जैसे की द्रौपदी के चीर बढ़ाये , सुदामा आदि .और हाँ रजनीश जी कभी अलविदा न कहना हम सबको यही रहकर, और यू ही साहित्यिक, सामाजिक चर्चाएँ करनी है ...
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