Re: Adhunik yug ki draupdi.
आपका आलेख पढ़ते हुए मुझे एक पुरानी कहावत याद आ गई - जिसकी लाठी उसकी भैंस. लेकिन इन्टरनेट के प्रयोग के बारे में और उस पर सरकारी नियंत्रण लादने व उसे सरकारी प्रचार का माध्यम बना देने सम्बन्धी आपकी धारणा निर्मूल है, मित्र. सरकारी प्रचार प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा बैठकों-सभाओं-जलसों-जलूसों के माध्यम से पहले भी होता था और आज भी होता है. हाँ, आज सोशल मीडिया का प्रयोग पहले से कहीं अधिक है. लेकिन आप बतायें कि उससे पब्लिक ओपिनियन पर कितना असर पड़ा है? मेरे विचार से कोई खास नहीं. इस स्थिति में भविष्य में अधिक बदलाव की संभावना भी नहीं है. कोई सरकार सारे प्रचार तंत्र को नहीं खरीद सकती. सूचना प्रोद्योगिकी आपके चारों ओर बिखरी है- हज़ारों लाखों खिड़कियों के माध्यम से.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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