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rajnish manga
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Default Re: 'श्री गणेशाय नम:

अष्ट-विनायक
साभार: शिखा कौशिक जी

भगवान श्री गणेश के अनेक रूपों की पूजा की जाती है. इनमे इनके आठ स्वरुप अत्यधिक प्रसिद्ध हैं. गणेश जी के इन आठ स्वरूपों का नामकरण उनके द्वारा संहार किये गए असुरों के आधार पर किया गया है.

देवराज -प्रमाद से हुई मत्सरासुर उत्पत्ति ;
दैत्य गुरुसे दीक्षा पञ्चाक्षरी मन्त्र की प्राप्त की ,
'ॐ नम: शिवाय 'से किया कठोर तप उसने ;
हो प्रसन्न फिर 'अभय' का वरदान दिया था शिव ने .

पाकर वरदान प्रभु से मत्सर अपने घर आया ;
शुक्राचार्य ने तब उसे दैत्यों का नृप बनाया ,
फिर उसके मंत्री सदा उसे देते 'विश्व-विजय 'सलाह ,
शक्ति-पद का मद उसके भी सिर चढ़कर था बोल रहा .

बलशाली उस असुर ने सेना को साथ लिया ;
पृथ्वी के राजाओं पर हमला फिर बोल दिया ,
उस असुर के समक्ष कोई नृप न टिक सका ;
कुछ पराजित हो गए ,कोई कन्दरा में जा छिपा .

पृथ्वी-विजय के बाद पाताल-स्वर्ग को बढ़ा;
''शेष'' भी आधीन हो ;कराधान को राजी हुआ ,
वरुण,कुबेर,यम भी न उसका विरोध कर सके ,
इंद्र के घुटने भी मत्सर के आगे थे टिके .

पृथ्वी-स्वर्ग-पाताल का मत्सर था राजा हो गया ;
तीनों लोक में असुर आतंक -तम था बढ़ गया ,
त्रस्त हो सब देवता कैलाश पहुंचे जोड़ हाथ ;
ब्रह्मा जी व् श्री हरि- देवताओं के थे साथ .

देवताओं ने सुनाएँ दैत्य -अत्याचार थे ;
'दुष्कर्म है ये महा' शिव के ये उद्गार थे ,
यह समाचार जब मत्सर के कान में पड़ा;
कैलाश पर भी आक्रमण करने को वो आगे बढ़ा .

घोर युद्ध शिव के संग मत्सर का होने था लगा ;
किन्तु अपने बल से उसने शिव को भी दे दी दगा ,
बांध शिव को पाश में कैलाश -स्वामी बन गया ,
कैलाश पर रहते हुए आतंक फैलता रहा .

मत्सर-विनाश कैसे हो ?देवों की थी चिंता यही ;
भगवान् दत्तात्रेय तभी उनके निकट आये वही ,
वक्रतुंड मन्त्र ''गं'' का उपदेश देवों को दिया ;
देवताओं ने ह्रदय से मन्त्र का था जप किया .

संतुष्ट हो आराधना से 'वक्रतुंड' प्रकट हुए ,
'आप सब निश्चिन्त हो 'देवों से ये वचन कहे ,
मत्सरासुर का घमंड चूर अब मैं कर दूंगा ;
आपकी समस्त पीडाओं को शांत कर दूंगा .

असंख्य गण के संग मत्सर-नगर को घेरा था ;
काली रात्रि के बाद ये नया सवेरा था ,
पांच दिन घनघोर युद्ध पूरे प्रवाह से था चला ;
वक्रतुंड के दो गणों ने मत्सर सुतों का वध किया .


पुत्र वध से व्याकुल मत्सर उपस्थित था हुआ;
उन्मत्तता में प्रभु को गालियाँ देने लगा ,
तब प्रभावी प्रभु ने उससे ये वचन कहे -
'शस्त्र धर' शरण में आ ; प्राण हैं गर तुझको प्रिय .

अन्यथा निश्चित ही तू अब तो मारा जायेगा ;
अन्याय का ये घोर तम उस क्षण ही मिटने पायेगा ,
देखकर विकराल रूप प्रभु का, हो गया असुर विह्वल ;
क्षीण-शक्तिवान मत्सर करने लगा उनका नमन .

मत्सर की प्राथना से वक्रतुंड संतुष्ट हुए ;
'अभय'-'अपनी भक्ति' वर दे ,उससे ये वचन कहे -
पाताल लोक में रहो ,जीवन बिताओ शांति से ,
अन्याय-अत्याचार पथ पर चलना न तुम भ्रान्ति से .

देवताओं को भी उसकी कैद से छुड़ा लिया ,
अपनी भक्ति का उन्हें वरदान प्रभु ने दिया ,
'वक्रतुंड' भगवान् की महिमा का ये गुणगान है ,
उनके ह्रदय में सर्वदा भक्त का स्थान है .

''जय श्री वक्रतुंड भगवान् की ''
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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