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Old 04-04-2013, 11:19 PM   #26
rajnish manga
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Default Re: इधर-उधर से

सदा नहीं रहते
(लेखक: यशपाल जैन)

किसी नगर में एक सेठ रहता था. वह बड़ा ही उदार और परोपकारी था.उसके दरवाजे पर जो भी आता, उसकी वह दिल खोल कर मदद करता.

एक दिन उसके यहाँ एक आदमी आया. उसके हाथ में एक परचा था, जिसे वह बेचना चाहता था.उसके पर्चे पर लिखा था – ‘सदा न रहे’! इस पर्चे को कौन खरीदता. लेकिन सेठ ने उसे तत्काल ले लिया और उसे अपनी पगड़ी के छोर में बाँध लिया.

नगर के कुछ लोग सेठ से ईर्ष्या करते थे. उन्होंने एक दिन राजा के पास जाकर उसकी शिकायत की और राजा ने सेठ को पकड़वा कर जेल में डलवा दिया.

जेल में काफी दिन निकल गए. सेठ बहुत दुखी था. क्या करे, उसकी समझ में कुछ नहीं आता था.

एक दिन सेठ का हाथपगड़ी की गांठ पर पड़ गया. उसने गाँठ को खोल कर परचा निकाला और पढ़ा. पढ़ते ही उसकी आँखें खुल गयीं. उसने मन ही मन कहा, अरे, “तो दुःख किस बात का! जब सुख के दिन सदा न रहे तो दुःख के दिन भी सदा न रहेंगे.”

इस विचार के आते ही वह जोर से हंस पड़ा और देर तक हँसता रहा. चौकीदार ने उसकी हंसी सुनी तो उसे लगा, सेठ मारे दुःख के पागल हो गया है. उसने राजा को खबर दी. राजा आया. सेठ से पूछा, “क्या बात है?” सेठ ने सारी बात बता दी. उसने राजा से कहा, “राजन, आदमी दुखी क्यों हो? सुख-दुःख के दिन तो सदा बदलते रहते हैं.”

सुन कर राजा को बोध हो गया. उसने सेठ को जेल से निकलवा कर उसके घर भिजवा दिया. सेठ आनंद से रहने लगा.

(साभार: जीवन साहित्य / जून 1980)

Last edited by rajnish manga; 04-04-2013 at 11:23 PM.
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