Re: पिता
कभी राम के वियोग में दशरथ बनकर तड़प-तड़पकर त्याग देता है प्राण, कभी अभिमन्यु के विरह में अर्जुन बन संहार कर देता है कौरवों की सेना का, तो कभी पुत्र मोह में हो जाता है धृतराष्ट्र की तरह नेत्रहीन। पिता वह रक्त जो दौड़ता रहता है संतान की धमनियों में। जो चमकता है संतान के गालों पर और दमकता है उसके माथे पर।
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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