Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरों का मुहावरा
आलेख: जुगनू शारदेय
कितने समझदार और बड़े व्यंगकार रहे होंगे मुहावराबनाने वाले लोग। अब देखिए न कह दिया, ‘पढ़े फारसी बेचे तेल ...।’ अभी तक किसी ने यहतय नहीं किया है कि यह बेरोजगारी पर व्यंग है या चमचागिरी की पहचान है ।
कभी फारसी जानने वालों को ही सरकारी नौकरी मिला करती थी। जैसे आज अंग्रेजीजानने वालों को मिला करती है। किसी फारसीदां को नौकरी न मिली होगी तो बेचारा तेल काकारोबार करने लगा होगा।
यहां बहस हो सकती है कि तेल का कौन-सा कारोबार करताहोगा। तेल बेचने का या तेल लगाने का। मुहावरा में साफ कहा गया है कि ‘बेचे तेल।’ बेचने वाले अपनी चिकनी चुपड़ी बोली से तेल भी लगाते हैं। तेललगाने के बहुत फायदे होते हैं। इन्हीं फायदों को ले कर भी एक मुहावरा है कि छुछुंदरके माथे पर चमेली के तेल। इन दिनों तेल बहुत महंगा है। इसलिए असली तेल के बजाए लोगबोली का तेल लगाते हैं।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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