फिर भी आज मन में यह गुस्ताख सी ख्वाहिश कैसे जागी? की एक फिल्म बनाउ? मुल कहानी में बदलाव किए बिना? यही कहानी फिर से मल्टीप्लेक्स के पर्दों पर दिखे तो? लेकिन विध्या सिंन्हा की जगह कौन ले सकता है? और अमोल की जगह किसी की कल्पना की जा सकती है? आज कल एक्सरिमेन्टल फिल्में भी चल रही है। क्या खयाल है?