Re: ग़ज़ल सबके सरोकार की
रहनुमा जिनको बनाया था , बन गये रहजन ;
इनकी हद फिर से इन्हें याद दिलाई जाये .
हमने ख़ुद के ही मसअलों के गीत गाये बहुत ;
अब ग़ज़ल सबके सरोकार की गाई जाये .
बहूत ही भावात्मक कविता , सुंदर भाव और सब्दों का चयन
किया है डॉ साहब
बधाई स्वीकार करें
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