[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;234313]
जो अन्धेरों को मान बैठे मुकद्दर अपना ;
रौशनी उनके निशाने पे भी लाई जाये .
चन्द जिन लोगों ने हथिया लिया सूरज सारा ;
नक़ाब ऐसे शरीफ़ों की हटाई जाये .
हमने ख़ुद के ही मसअलों के गीत गाये बहुत ;
अब ग़ज़ल सबके सरोकार की गाई जाये .
डॉ. राकेश श्रीवास्तव जी, एक बढ़िया ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए आपको धन्यवाद कहना चाहता हूँ और साथ ही आपको मुबारकबाद देना चाहता हूँ कि आपने अपनी इस छोटी सी रचना में एक पीड़ित लेकिन प्रबुद्ध व्यक्ति की तड़प बड़े मार्मिक शब्दों में प्रकट की है किन्तु साथ ही कवि की विद्रोही वाणी का प्रखर तेज भी दुनिया को दिखाया है. मैं मानता हूँ कि यही तेवर समाज में परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करते हैं. डॉ. साहब, ग़ज़ल- सूत्र पर मेरी उपस्थिति पहले ही दर्ज है. हाँ, प्रतिक्रिया के साथ उपस्थित होने में विलम्ब हुआ, ह्रदय से क्षमाप्रार्थी हूँ.