Re: मेरी कलम से.....
मुझे पता था कि आपकी वापसी ज़रूर होगी और आप निःसन्देह रूप से कविता लिखना सीखने का ही प्रयत्न कर रही होंगी, क्योंकि आपको पता ही है कि आपको कविता लिखना न आने के कारण मुझे बहुत सदमा पहुँचा था! किन्तु अफ़सोस, आपको कविता लिखना अब आ गया है, किन्तु मेरा सदमा कम होने की जगह अब दोगुना हो गया है. कारण- आपकी कविता वर्ष १९५९ में लोकार्पित हिन्दी फ़ीचर फिल्म 'धूल का फूल' के गीत 'तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ... वफ़ा कर रहा हूँ, वफ़ा चाहता हूँ...' की धुन पर है. दिया और बाती वाला कॉन्सेप्ट मुझे पसन्द है, मगर बाती बनने से क्या होगा? दीपक में रौशनी ही कितनी होती है? पेट्रोमैक्स का फिलामेंट बनने का उदाहरण कविता में दिया जाता तो कितना अच्छा लगता? कितनी रोशनी होती और सारे संसार में प्रकाश छा जाता। चलिए कोई बात नहीं, आपकी कोशिश अच्छी है, प्रसंशनीय है. अब इस गीत के धुन पर कोई कविता लिखने का प्रयत्न करिए- 'हँस-हँस कर सहेंगे गम, ये प्यार न होगा कम, सनम तेरी क़सम.'
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