Re: लोककथा संसार
किन्तु धर्माचार्य फाहाई को यह सहन न हुआ कि पाईल्यांगची अभी तक जीवित है । उस ने श्युस्यान को धोखा दे कर चिनशान मठ में बंद कर दिया और उसे भिक्षु बनने पर मजबूर किया । इस पर पाईल्यांगची और श्योछिंग को अत्यन्त क्रोध आया , दोनों ने जल जगत के सिपाहियों को ले कर चिनशान मठ पर हमला बोला और श्युस्यान को बचाना चाहा । उन्हों ने बाढ़ बुला कर मठ पर धावा करने की कोशिश की , लेकिन धर्माचार्य फाहाई ने भी दिव्य शक्ति दिखा कर हमले का मुकाबला किया । क्योंकि पाईल्यांगची गर्भवती हुई थी और बच्चे का जन्म देने वाली थी , इसलिए वह फाहाई से हार गयी और श्योछिंग की सहायता से पीछे हट कर चली गई । वो दोनों फिर पश्चिमी झील के टूटे पुल के पास आयी , इसी वक्त मठ में नजरबंद हुए श्युश्यान मठ के बाहर चली युद्ध की गड़बड़ी से मौका पाकर भाग निकला , वह भी टूटे पुल के पास आ पहुंचा । संकट से बच कर पति-पत्नी दोनों को बड़ी ख़ुशी हुई। इसी बीच पाईल्यांगची ने अपने पुत्र का जन्म दिया । लेकिन बेरहम फाहाई ने पीछा करके पाईल्यांगची को पकड़ा और उसे पश्चिमी झील के किनारे पर खड़े लेफङ पगोडे के तले दबा दिया और यह शाप दिया कि जब तक पश्चिमी झील का पानी नहीं सूख जाता और लेफङ पगोड़ा नहीं गिरता , तब तक पाईल्यांगची बाहर निकल कर जग में नहीं लौट सकती ।
वर्षों की कड़ी तपस्या के बाद श्योछिंग को भी सिद्धि प्राप्त हुई , उस की शक्ति असाधारण बढ़ी , उस ने पश्चिमी झील लौट कर धर्माचार्य फाहाई को परास्त कर दिया , पश्चिमी झील का पानी सोख लिया और लेफङ पगोडा गिरा दिया एवं सफेद नाग वाली पाईल्यांगची को बचाया ।
यह लोककथा पश्चिमी झील के कारण सदियों से चीनियों में अमर रही और पश्चिमी झील का सौंदर्य इस सुन्दर कहानी के कारण और प्रसिद्ध हो गया ।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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