Re: शताब्दी के महानायक अमिताभ बच्चन
प्र. निजी जीवन पर अपने बाबूजी का सबसे गहरा असर क्या मानते हैं? क्या हिंदीभाषा पर आपकी इतनी ज़बरदस्त पकड़ का श्रेय हम उन्हें दे सकते हैं?
उ. हां, क्यों नहीं. मैंने सबसे अधिक उन्हीं को पढ़ा है. उनकी जो कविताएं हैं, जो लेखन है, जो भी छोटा-मोटा ज्ञान मिला है, उन्हीं से मिला है. लेकिनहिंदी को समझना और उसका उच्चारण करना, दो अलग-अलग बातें हैं. मैं नहींमानता हूं कि मेरी जिज्ञासा या मेरा ज्ञान हिंदी के प्रति बहुत ज्यादाअच्छा है. लेकिन मैं ऐसा समझता हूं कि किसी भाषा का उच्चारण सही होनाचाहिए. उसमें त्रुटियां नहीं होनी चाहिए. हिंदी बोलें या गुजराती या तमिलया कन्नड़ बोलें, तो उसे सही ढंग से बोलने का हमारे मन मेंहमेशा एक रहताहै. और बिना बाबूजी के असर के मैं मानता हूं कि मेरा जीवन बड़ा नीरस होता.स्वयं को भागयशाली समझता हूं कि मैं मां-बाबूजी जैसे माता-पिता की संतानहूं. माता जी सिक्ख परिवार से थीं और बहुत ही अमीर घर की थीं. उनके फादरबार एटलॉ थे उस जमाने में. वह रेवेन्यू मिनिस्टर थे पंजाब सरकार के पटियाला में. अंग्रेजी, विलायती नैनीज़ होती थीं उनकी देखभाल के लिए. उस वातावरणसे माता जी आईं और उन्होंने बाबूजी के साथ ब्याह किया. जो कि लोअर मीडिलक्लास से थे, उनके पास व्यवस्था ज़्यादा नहीं थी. ज़मीन पर बैठकरपढ़ाई-लिखाई करते थे, मिट्टी के तेल की लालटेन जलाकर काम करते थे, लाइटनहीं होती थी उन दिनों. मुझे लगता है कि कहीं न कहीं मां जी का जो वातावरणथा, जो उनके खयाल थे, वह बहुत ही पश्चिमी था और बाबूजी का बहुत ही उत्तरीथा. इन दोनों का इस्टर्न और वेस्टर्न मिश्रण जो है, वो मुझे प्राप्त हुआ.मैं अपने आप को बहुत भागयशाली समझता हूं कि इस तरह का वातावरण हमारे घर केअंदर हमेशा फलता रहा.
कई बातें थीं, जो बाबूजी को शायद नहीं पसंद आतीहोंगी, लेकिन कई बातें थीं, जिसमें मां जी की रुचि थी- जैसे सिनेमा जाना, थिएटर देखना. इसमें बाबूजी की ज़्यादा रुचि नहीं होती थी. वह कहते थे कि यह वेस्ट ऑफ टाइम है, घर बैठकर पढ़ो. मां जी सोचती थीं कि हमारे चरित्र को और उजागर करने के लिए ज़रूरी है कि पढ़ाई के साथ-साथ थोड़ा-सा खेलकूद भी किया जाए. मां जी खुद हमें रेस्टोरेंट ले जाती थीं, बाबूजी न भी जाते हों. तोये तालमेल था उनका जीवन के प्रति और वो संगम हमको मिल गया.
|