Re: नौ साल छोटी पत्नी
यह मनोरंजन का साधन भी अचानक उसके हाथ लग गया था। उस दिन एक पुस्तक ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह तृप्ता के ट्रंक की भी छानबीन न करता, तो शायद इससे वंचित ही रहता। पुस्तक न मिलने पर उसने महसूस किया था कि ट्रंक में वक्त काटने के लिए बहुत सी रोचक सामग्री भरी पड़ी है। ट्रंक में कपड़ों के नीचे एक साधारण-सा पर्स पड़ा था, पर्स में मैट्रीकुलेशन का सर्टिफिकेट, तुड़ी-मुड़ी सी दो एक तस्वीरें, जिनमें युवक भेस में तृप्ता का एक चित्र था, माला से बिखरे हुए कुछ मोती, एक मैला पिक्चर पोस्टकार्ड, एक सेंट की लगभग खाली शीशी बहुत हिफाजत से रखी हुई थी। मैट्रीकुलेशन का सर्टिफिकेट देख कर कुशल शिथिल हो गया था। उसे लग रहा था जैसे अनजाने में उससे चूजा जिबह हो गया हो। सर्टिफिकेट के हिसाब से तृप्ता की उमर कुशल से नौ साल कम बैठती थी। उसने सर्टिफिकेट से तृप्ता के अंक भी न पढ़े थे कि वापिस पर्स में रख दिया।
ट्रंक में सबसे नीचे अखबार का एक बड़ा कागज बिछा था, मगर साफ पता चलता था कि कागज के नीचे कुछ है, क्योंकि कागज एक जगह से ऐसे उठा हुआ था, जैसे उसके नीचे एक बड़ा मेढक पड़ा हो। कुशल ने बड़ी एहतियात से वह मेंढ़क निकाला। कागजों का एक खस्ता पुलिन्दा था, जिसमें दोनों के खत थे। सोम के भी और तृप्ता के भी, जो शायद तृप्ता ने चालाकी से वापिस ले लिये थे या सोम ने शराफत से लौटा दिये थे। खत पढ़ते पढ़ते कुशल, कितनी देर तक हँसता रहा था। तृप्ता ने वही बातें लिखीं थीं, जो कभी-कभी भावुक हो कर उससे भी किया करती है। सोम के खत पढ़ कर तो हँसी से लोटपोट हो गया था। सोम की शक्ल देख कर तो अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि वह इतना भावुक हो सकता है और हिज्जों की इतनी गलतियाँ कर सकता है। इस बार जब सोम आया था तो उसने थोड़ी-थोड़ी मूँछें भी बढ़ायी हुई थीं। कुशल को यह बात बड़ी अजीब लगी कि मूँछें बढ़ा कर भी आदमी भावुक हो सकता है। मूँछों वाला भावुक!
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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