Re: नौ साल छोटी पत्नी
तृप्ता ने कुशल की ओर नहीं देखा, उसकी बात भी अनसुनी कर दी और घुटनों में सर दे कर बैठ गयी। पहले तो कुशल के जी में आया कि तृप्ता को चुप करवाया जाये और उसी बहाने प्यार भी किया जाये, परन्तु उसने महसूस किया कि बिना सिगरेट के कश खींचे प्यार नहीं किया जा सकता, भावुक तो बिल्कुल नहीं हुआ जा सकता। कुशल जानता है कि तृप्ता भावुकता-रहित प्यार को स्वीकार नहीं करेगी। उसने घुटनों पर झुकी तृप्ता की ओर देखा और पाँव में चप्पल पहनने लगा। तृप्ता के झुक कर बैठने से उसकी पीठ भरी-पूरी और मांसल लग रही थी। सफेद वायल के ब्लाउज में से उसके ब्रेसियर की कसी हुई तनियाँ नजर आ रही थीं।
तृप्ता ने कुशल को चप्पल घसीटते हुए बाहर जाते देखा तो सिसकियाँ भरने लगी। कुशल के मन में तृप्ता के प्रति करुणा उमड़ रही थी। उसे दुकान से इस प्रकार उठ आने में कोई तुक नजर नहीं आ रही थी। उसे मालूम है कि अब वह तृप्ता को जितना भी मनाने का प्रयत्न करेगा, वह उसी मात्रा में रूठती चली जायेगी। मनाने के इस लम्बे सिलसिले से तो दुकान पर दिन भर टाइप करना कहीं आसान है, कुशल ने सोचा और पनवाड़ी से सिगरेट का पैकेट लिया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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