Re: खुशवंत सिंह की किताबें> एक परिचय
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खुशवंतनामा: द लैंस ऑफ़ मय लाइफ
खुशवंत सिंह की दृष्टि में ईश्वर और धर्म के अस्तित्व पर प्रश्न ही प्रश्न हैं. वे कहते है कि आस्तिक को विश्वास है कि “अल्लाह, ब्रह्म, परमेश्वर या वाहेगुरु या जो भी नाम दो, यह सृष्टि उसी की रचना है. यदि यही सच है तो उसे किसने बनाया. किसी के पास कोई उत्तर नहीं है. वास्तव में पृथ्वी पर जीव की सृष्टि नहीं बल्कि उसका विकास हुआ था. ईश्वर ने हमें नहीं बल्कि हमने ईश्वर को बनाया. वे अनीश्वरवादी है. प्रार्था में शक्ति है, वह यह मानते हैं. पर इसे मानने के लिए ईश्वर को मानना जरुरी नहीं है. अपनी दादी के साथ रहते हुए उन्होंने अमृत छका और खालसा भी बने. अपनी प्रार्थनाओं का अर्थ समझने के लिए उन्होंने बहुत श्रम किया और सुविज्ञ विद्वानों से मिल कर जानकारी हासिल करने की कोशिश की. कीर्तन सुनना उन्हें अच्छा लगता था और गुरबाणी सुनने में उन्हें असीम आनंद मिलता था. लेकिन धार्मिक पाखंड, रुढ़िवाद और अंधविश्वास का वे हमेशा पुरजोर खंडन करते रहे.
उन्होंने विभिन्न धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया और अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों में इस विषय को पढाया भी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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