Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अपनी चेतना को चंडी रूप दें
शास्त्र की कथा कहती है कि दुर्गा और रक्तबीज का युद्ध हुआ तो दुर्गा उस राक्षस का सिर काटती, उसकी गर्दन गिरती, खून की धार बहती तो जितनी बूंदें खून की गिरतीं, उतने ही नए रक्तबीज पैदा हो जाते। लंबा युद्ध चला। फिर दुर्गा ने अपना रूप बदला और काल,चंडी,चामुण्डा जैसे रूप धारण किए। तब उस राक्षस का सिर कटा और खून की एक बूंद भी जमीन पर नहीं गिरी क्योंकि पूरा का पूरा खून चंडिका खुद पी गईं। अब रक्तबीज कहां से पैदा होता? आपका मन रक्तबीज की तरह ही तो है। एक विचार हटाओ, हजार खड़े हो जाते हैं। बस अपने होश को चंडी बनने दो, चंडी को भागवद पुराण में कहा है कि देवी सुप्त है। उसको भाव से जागृत करना पड़ता है। तुम भी अपने बीच सो रही चेतना को चंडी का रूप दो। यही तुम्हारे मन रूपी रक्तबीज राक्षस का नाश करेगी। जिस दिन मन के विचारों से ज्यादा परेशानी लगने लग जाए उस दिन कह देना कि आज हमें यह मन की भीड़ स्वीकार, विचारों की भीड़ भी स्वीकार है। तब तुम पाओगे कि मन तो बहुत कुछ विचार करता है पर आप परेशान न हों। बस स्वीकार कर लीजिए कि यही मन का शोर स्वीकार है। कहिए कि मन तूने खूब खेल दिखाए आज हम तेरा शोर देखेंगे। इस प्रयोग का नतीजा क्या होगा? जब आप करोगे तो तभी आपको पता चलेगा कि नतीजा क्या निकला, क्योंकि सच तो यह है कि अध्यात्म के पथ पर दो दूनी चार ही नहीं होता, दो दूनी छह भी हो सकता है, आठ भी हो सकता है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो जन्म-जन्म तक ध्यान करते रहते हैं और कोई नतीजा नहीं निकलता। इसके विपरीत कोई एक ही बार आए ध्यान में और यदि वह भाव जागृत हो जाए तो समझ लो कि वह बुद्ध हो गया। मतलब बुद्धू से बुद्ध हो गया। यह बुद्धत्व की घटना बड़ी अदभुत घटना है। यह कब, किस घड़ी,कैसी स्थिति में घट जाए, हम कह नहीं सकते,वर्णन नहीं कर सकते। इसी तरह अपने जीवन को खेल ही समझो और जो करो मन लगाकर करो।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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