मेरी कहानियाँ / गलती की सजा
मेरी कहानियाँ / गलती की सजा
विजिलेंस वालों ने रिश्वत लेते आखिर उसे रंगे हाथों पकड़ ही लिया. फ़ौरन चार्जशीट और सस्पेंशन ऑर्डर आ गये. पकडे गये कर्मचारी की सारे विभाग में निंदा हो रही थी.
हैड साहब कह रहे थे – “मुझे सत्रह साल हो गये. मैं भी खाता हूँ, कौन नहीं खाता? लेकिन मजाल है किसी ने आज तक मुझ पर उंगली उठाई हो. एक ये हैं कि ... “
कैशियर ने समर्थन किया, “अरे हैड साहब, वाजिब खायेगा तो पचेगा, गैर-वाजिब खायेगा तो कैसे चलेगा? ऐसे ही लोग डिपार्टमेंट की बदनामी करवाते है.”
किसी ने रोक कर कहा, “यार उस बेचारे की तो नौकरी खतरे में है और तुम उसी को कोस रहे हो.”
इस पर एक मोटे से क्लर्क ने जैसे निंदा प्रस्ताव का उपसंहार करते हए कहा, “जो जैसा करेगा वो वैसा ही भरेगा भाई.”
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