Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
गेंद पर्वत के नीचे जा कर रुक गई तो वह घोड़े से उतर पड़ी और उसकी गर्दन पर लगाम डालने के बाद उसने अपने कानों में ठूँस-ठूँस कर रूई भर ली और धीरे-धीरे पहाड़ पर चढ़ने लगी। उसके पीछे आवाजें होने लगीं किंतु वे कानों में रूई ठुँसी होने के कारण उसे सुनाई न दीं और वह बढ़ती गई। फिर पीछे से आनेवाली आवाजें और तेज हुईं। यह आवाजें भी उसे धीमी सुनाई दीं और उन्होंने उसके मस्तिष्क को बिल्कुल विचलित नहीं किया। फिर उसे ऐसी गालियाँ सुनने को मिलीं जो स्त्रियों के लिए होती हैं और बड़ी अपमानजनक होती हैं। परीजाद को एक क्षण तो बुरा लगा किंतु फिर वह उन गालियों पर हँस पड़ी।
इसी तरह उस भयानक चढ़ाई को दृढ़ता और संयम से पूर्ण करने के बाद वह शिखर पर पहुँची तो देखा कि एक पिंजड़े में एक सुंदर चिड़िया मधुर स्वर में गा रही है। परीजाद को देखते ही वह सिंह की तरह गरज कर बोली, ए लड़की, खबरदार मेरे पास न आना। परीजाद इस पर हँसने लगी और दौड़ कर चोटी पर पहुँच गई। वहाँ भूमि समतल थी। उसने दौड़ कर चिड़िया के पिंजड़े पर हाथ रखा और बोली, चिड़िया रानी, आज से मैं तुम्हारी मालकिन हूँ और तुम मेरे कब्जे में रहोगी। फिर उसने कानों की रूई निकाल दी। चिड़िया बोली, तुम ठीक कह रही हो। अब मैं सदैव तुम्हारी सेवा और हित साधना करती रहूँगी। मैं पिंजड़े में बंद रहती हूँ किंतु संसार की कोई बात नहीं जो मुझे मालूम नहीं है। तुम्हारा हाल इतना जानती हूँ जितना तुम भी नहीं जानतीं और मेरे कारण तुम्हें अयाचित लाभ मिलेगा। अब तुम मेरी स्वामिनी हुई और तुम्हारी सेवा करना मेरा धर्म है। इस समय तुम बताओ कि मुझ से क्या चाहती हो। मैं बगैर ना-नुकुर के उसे करूँगी।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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