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Originally Posted by Deep_
होतें है....गांव में एसे भी घर मैने देखे है जहां हररोज बच्चे, बडे और बुढे मील कर एक साथ खाना खाते है फिर देर रात तक बतियाते रहेतें है। हंसी, मजाक, मस्ती, ज्ञान की बातें, पुरानी यादें और खास कर के माहिती का आदान-प्रदान भी होता रहेता है। परिवार में ईतना कोम्युनिकेशन मैने जब पहली बार देखा तो सचमुच बहुत अच्छा लगा था।
मुझे लगता की शहर में टीवी की वजह से यह सब बंध हो गया है। एक दुसरे के घर आनाजाना भी बहुत कम हो गया है। उपर से स्मार्ट फोन आ गए है, जो सभी का ध्यान कीसी वर्चुअल दुनिया में लगाए रहता है।
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dhanywad deep ji ...आपने कुछ पलों के लिए ये देखा तो कितना अच्छा लगा न आपको? याने की हर अछि चीज इन्सान के मन को भाती है और वो उसे पाना भी चाहता है किन्तु आज समय आपसी मतभेद से और मनमुटावों से समाज की, घर परिवार की हालत खस्ता होते जा रही है रोज रोज समाज में नई नई समस्याओं का जन्म हो रहा है जिसके लिए हम सिर्फ स्मार्ट फोन और टीवी को दोषित नहीं ठहरा सकते. हमे खुद को पहले इन सब चीजो से प्रभावित होने से बचाना है और अछि बाते हमारे मन में बिठानी है और अपनो के लिए, अपने आसपास के वातावरण के लिए अच्छाकार्य करना, अच्छा सोचना है तब आप एक अछे इंसान बनोगे और तब ही आपके घर में आपके इस स्वाभाव का असर दिखेगा और घर में इतनी शांति स्थापित होगी जेइसे की एक मंदिर में होती है