Re: कथा-लघुकथा
पुरस्कार या तिरस्कार
(इन्टरनेट से)
एक बहादुर सिंह, किसी उद्योगपति के घर चौकीदार था. एक दिन तडके वह उद्योगपति प्रातःकालीन फ्लाईट पकड़ने के लिए अपनी कार से निकल रहा था. उसे कोई महत्वपूर्ण व्यापारिक अनुबंध पर हस्ताक्षर करने थे. इतने में बहादुरदौड़ते हुए आया और गेट पर ही अपने मालिक को रोक दिया.
सर जी, सर जी, क्या आप हवाई जहाज में जाने वाले हो?
हाँ क्या बात है?
सर जी आप अपना टिकट केंसल करा लो.
क्यों?
कल रात मैंने सपने में देखा कि आप का जहाज़ क्रेश होने वाला है. उद्योगपति सेठ ने आगाह किया “यह सही नहीं निकला तो तुम्हारी ऐसी तैसी कर दूंगा” करोड़ों का मामला है.
अपशकुन मान उद्योगपति ने अपनी यात्रा तो रद्द कर ही दी.
दूसरे दिन अख़बारों में खबर आई कि वास्तव में सेठ जिस जहाज़ से जाने वाला था वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया.
खुदा का शुक्र है, बहादुर की बात मान कर हमने अपनी यात्रा स्थगित कर दी, उद्योगपति ने सोचा और बहादुर को बुला भेजा. जब बहादुर पहुंचा तो उद्योगपति ने उस तारीख तक का वेतन देकर बहादुर की छुट्टी कर दी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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