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Old 08-02-2013, 06:17 PM   #5
jai_bhardwaj
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Default Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~

पवित्र क़ुरआन पत्नियों की संख्या सीमित करता है जैसा कि मैंने पहले बताया कि पवित्र क़ुरआन ही वह एकमात्र धार्मिक ग्रंथ है जिसमें कहा गया हैः

‘‘केवल एक से विवाह करो।’’

इस आदेश की सम्पूर्ण व्याख्या पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में मौजूद है जो ‘‘सूरह अन्-निसा’’ की हैः

‘‘यदि तुम को भय हो कि तुम अनाथों के साथ न्याय नहीं कर सकते तो जो अन्य स्त्रियाँ तुम्हें पसन्द आएं उनमें दो-दो, तीन-तीन, चार-चार से निकाह कर लो, परन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि उनके साथ तुम न्याय न कर सकोगे तो फिर एक ही पत्नी करो, अथवा उन स्त्रियों को दामपत्य में लाओ जो तुम्हारे अधिकार में आती हैं। यह अन्याय से बचने के लिए भलाई के अधिक निकट है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 4 : 3 )

पवित्र क़ुरआन के अवतरण से पूर्व पत्नियों की संख्या की कोई सीमा निधारित नहीं थी। अतः पुरूषों की एक समय में अनेक पत्नियाँ होती थीं। कभी-कभी यह संख्या सैंकड़ों तक पहुँच जाती थी। इस्लाम ने चार पत्नियों की सीमा निधारित कर दी। इस्लाम किसी पुरूष को दो, तीन अथवा चार शादियाँ करने की अनुमति तो देता है, किन्तु न्याय करने की शर्त के साथ।

इसी सूरह में पवित्र क़ुरआन स्पष्ट आदेश दे रहा हैः

‘‘पत्नियों के बीची पूरा-पूरा न्याय करना तुम्हारे वश में नहीं, तुम चाहो भी तो इस पर कषदिर (समर्थ) नहीं हो सकते। अतः (अल्लाह के कानून का मन्तव्य पूरा करने के लिए यह पर्याप्त है कि) एक पत्नी की ओर इस प्रकार न झुक जाओ कि दूसरी को अधर में लटकता छोड़ दो। यदि तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और अल्लाह से डरते रहो तो अल्लाह दुर्गुणों की उपेक्षा करने (टाल देने) वाला और दया करने वाला है।’’ (पवित्र क़ुरआन, 4:129)

अतः बहु-विवाह कोई विधान नहीं केवल एक रियायत (छूट) है, बहुत से लोग इस ग़लतफ़हमी का शिकार हैं कि मुसलमानों के लिये एक से अधिक पत्नियाँ रखना अनिवार्य है।

विस्तृत परिप्रेक्ष में अम्र (निर्देशित कर्म Do's) और नवाही (निषिद्ध कर्म Dont's) के पाँच स्तर हैं:

कः फ़र्ज़ (कर्तव्य) अथवा अनिवार्य कर्म।

खः मुस्तहब अर्थात ऐसा कार्य जिसे करने की प्रेरणा दी गई हो, उसे करने को प्रोत्साहित किया जाता हो किन्तु वह कार्य अनिवार्य न हो।

गः मुबाह (उचित, जायज़ कर्म) जिसे करने की अनुमति हो।

घः मकरूह (अप्रिय कर्म) अर्थात जिस कार्य का करना अच्छा न माना जाता हो और जिस के करने को हतोत्साहित किया गया हो।

ङः हराम (वर्जित कर्म) अर्थात ऐसा कार्य जिसकी अनुमति न हो, जिसको करने की स्पष्ट मनाही हो।

बहुविवाह का मुद्दा उपरोक्त पाँचों स्तरों के मध्यस्तर अर्थात ‘‘मुबाह’’ के अंर्तगत आता है, अर्थात वह कार्य जिसकी अनुमति है। यह नहीं कहा जा सकता कि वह मुसलमान जिसकी दो, तीन अथवा चार पत्नियाँ हों, वह एक पत्नी वाले मुसलमान से अच्छा है।

स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है प्राकृतिक रूप से स्त्रियाँ और पुरूष लगभग समान अनुपात से उत्पन्न होते हैं। एक लड़की में जन्म के समय से ही लड़कों की अपेक्षा अधिक प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)होती है और वह रोगाणुओं से अपना बचाव लड़कों की अपेक्षा अधिक सुगमता से कर सकती है, यही कारण है कि बालमृत्यु में लड़कों की दर अधिक होती है। संक्षेप में यह कि स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है और किसी भी समय में अध्ययन करने पर हमें स्त्रियों की संख्या पुरूषों से अधिक ही मिलती है।

कन्या गर्भपात तथा कन्याओं की मृत्यु के कारण भारत में पुरूषों की संख्या स्त्रियों से ज़्यादा है|
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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