Re: नौ साल छोटी पत्नी
कुशल ने कहकहा लगाया और बोला, ‘तुम जरूर उसे फँसाओगी।’
'फँसाऊँगी कैसे?
'उससे न तो खतों को नष्ट करते ही बनेगा और सँभाल कर रखेगी तो किसी वक्त भी राज खुल सकता है।’ कुशल ने कहा।
'भाड़ में जाये सुब्बी और उसके खत। अगर आप आप पिक्चर नहीं जायेंगे, तो मैं आपके लिए कुछ खरीद कर लाऊँगी।’
'इतना प्यार न किया करो तिप्पो।’ कुशल ने तृप्ता की कलाई पकड़ ली और उसी रुई को तृप्ता के गाल पर घिसते हुए बोला, ‘पहले तो तुम इतनी...।’
'बस-बस...।’ तृप्ता ने बात बीच में ही काट दी, ‘बताइए आपके लिए क्या लाऊँ?
'मेरे लिए एक खाट लाओ।’ कुशल की पिण्डलियों में फिर जोरों का दर्द होने लगा था।
तृप्ता जैसे प्रेम के अतिरेक में मचल उठी, गिनाने लगी, ‘नहीं, खाट नहीं। एक नयी बुश्शर्ट, एक आपकी प्रिय पुस्तक, नया टूथ ब्रश और...’ उसने कुछ सोचते हुए कहा, ‘और टॉफियाँ लॉलीपॉप!’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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