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Old 31-10-2010, 11:57 PM   #27
jai_bhardwaj
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Originally Posted by jalwa View Post
दादा, करने को तो चौबीसों घंटे भी कारखाना चला सकते हैं. लेकिन मैं धन के पीछे ज्यादा नहीं भागता. इसलिए बहुत साधारण तरीके से कार्य करता हूँ.

मेरी किस्मत में गम गर इतना था
दिल भी या रब कई दिए होते
सुन्दर विचार है बीरबल जी !
हृदय गदगद हो गया / धन्यवाद /

"तुम हमारे स्वप्न में आते हो, तो बस मुस्कुराते हो /
क्या गूंगे हो तुम ? नहीं तो मौन क्यों बन जाते हो //"
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
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