Re: गंगा से कावेरी तक
यूँ कंपनी वालों ने 3 तारीख को चेन्नई जाने को कहा था पर वह बीच मेंग्वालियर चला गया था, नीरा के बहन-भाइयों को छोड़ने।
फिर लौटकर, इलाहाबाद से यात्रा तय करना शुरू किया गया था। हालाँकि नीरा मन से नहीं चाहती थी कि वह चेन्नई जाए। पर कंपनी की तरफ से रिलीव होना अच्छा था ताकि बाद में कोई परेशानी न हो। कंपनी में किसी बात का कोई ठिकाना नहीं, कब क्या कहेंगे, करेंगे, कुछ समझ में नहीं आता। वैसे तपन भी डर रहा था पर वह ज्यादा परेशान नहीं था।
रिजर्वेशन न मिलने का बहाना वह कर रहा था और जब नौकरी छोड़ ही रहा है तो डरना किस बात का । हाँ, खर्च का सवाल जरूर था। कंपनी किराया अवश्य देगी पिछले दो वर्षों से वह कंपनी का रुख देखता आया है।
वह ट्रेन के सफर का फायदा उठा लेना चाहता था। वह सोच रहा था कि कुछ लिखे, परपेन ग्वालियर में ही छोड़ आया था। उसने सोचा था, इलाहाबाद से खरीद लेगा परभूल गया। दिन के ग्यारह बजे ट्रेन इलाहाबाद से चली थी। बर्थ का नंबर भी उसेपता नहीं था। जल्दबाजी में चार्ट नहीं देख सका था। अत: वह खिड़की के पासबैठा प्राकृतिक सौंदर्य देखता रहा। पहाड़ अच्छे लग रहे थे, आसमान पर बादलछाए हुए थे, मौसम सुहाना था। एक बजे उसने खाना खाया, नींद की झपकी भी आने लगी थी, वह बर्थ पर लेट गया, उसे ऊपर वाली बर्थ एलॉट की गई थी, कब नींद आ गई, पताही नहीं चला।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 18-06-2014 at 12:25 PM.
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