Re: मुहावरों की कहानी
बारात तो चली गई लेकिन लड़का और उसका पिता वहीँ रह गए. सेठ जी अपने दामाद और समधी को ले कर थाने पहुंचे. थानेदार ने सेठ जी को देखा तो उनका स्वागत किया और घर से कुर्सियां मंगवा कर सेठ जी और उनके मेहमानों को बिठाया. दामाद को तो टीका लाया और समधी को मिलनी में चाँदी का एक रूपया भी दिया. थानेदार ने सेठ जी को आदरपूर्वक विदा किया लेकिन सेठ जी ने लूट की रिपोर्ट लिखाने का ज़िक्र भी न किया.
ऐसी खातिर होती देख कर दामाद और समधी दंग रह गए. थानेदार की विनम्रता देख कर वह आश्चर्यचकित हो गए. समधी के मन में विचार आया की थानेदार इतना मिलनसार और भला आदमी है, फिर भी सेठ जी ने रिपोर्ट नहीं लिखवाई.
उधर दामाद सोच रहा था कि मेरे ससुर भी अजीब आदमी हैं जो अपना हक़ भी नहीं लेना चाहते.
वापसी में समधी और दामाद सेठ से लड़ने लगे. उनका कहना भी जायज़ था.
सेठ जी चलते चलते रुक गए. उन्होंने उन दोनों को बताया, “देखो, मैं मूर्ख नहीं हूँ. तुमने देखा कितना सम्मान किया दरोगा ने तुम दोनों का. जो कुर्सियाँ उसने अपने घर से मंगवाई थीं, वो हमारी थीं जिसे रात को डाकू ले गए थे. वह चाँदी का रूपया भी हमारा ही था जो थानेदार ने तुम्हें दिया था.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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