Re: प्रणय रस
आज शाम से मन उदास है
कोई न कोई बात खाश है
तुम नहीं हो मगर ये अहसाश है
की तुम नहीं आवोगी
मगर इस पागल दिल को कोंन समझाए
हर पल मानता तुम्हे आस पास है
तोड़ के सारे बंधन प्रेम के चली गयी तुम दूर निस्तब्ध हमें कर
मन में बस यह चाहत है तुम आवो गी जरुर
मगर इतना भी न तद्पवो की दम निकल जाये तड़प कर
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तोडना टूटे दिलों का बुरा होता है
जिसका कोई नहीं उस का तो खुदा होता है
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