Re: मोरा गोरा रंग लई ले
गुमसुम कल्याणी बैठी रही. बैठी रही, सोचती रही, काश, आज रोशनी न होती. इतनी चाँदनी न होती. या मैं ही इतनी गोरी न होती कि चाँदनी में छलक-छलक जाती. अगर सांवली होती तो कैसे रात में ढँकी-छुपी अपने पिया के पास चली जाती. लौट आयी बेचारी कल्याणी, वापस घर लौट आई. यही गुनगुनाते :
मोरा गोरा रंग लई ले
मोहे श्याम रंग दई दे
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