Re: लघुकथाएँ
जरूरत
”चलो पीछे करों भाई इन सबको, दरवाजे पर भीड़ क्*यों इकट्ठा कर रखी है।“ मरीजों को देखते हुए डॉ. प्रशांत ने अपने कम्*पाउंडर से कहा। उसने डॉ. का इशारा पाते ही मरीजों को सरकारी डिस्*पेंसरी के दरवाजे से बाहर धकेल दिया। उनमें से एक मरीज को डॉ. प्रशांत के पास लाते हुए वह बोला, ”सर, इसका इलाज तत्*काल करना पड़ेगा। यह बहुत ही सीरियस है। यदि कहीं यह इलाज के बिना मर गया तो गांव की राजनीति को एक नया मुद्*दा मिल जायेगा साथ ही आपकी बड़ी फजीहत होगी। अतः इसे जरूर देख लें।“
”ठीक है, बुलाओ उसे। मैं देख लेता हूँ।“
कम्*पाउंडर ने मरीज को डिस्*पेंसरी के अंदर ठेल दिया।
”क्*या नाम है तुम्*हारा?“
”जी रामू , रामू बल्*द घिस्*सू।“
”हूं , क्*या तकलीफ है ?“
”डागदर साब, कब्*ज बनी रहवे है।“
”अच्*छा, कल शाम को क्*या खाया था?“
”जी , कुछ नहीं।“
”कल सुबह?“
”जी कुछ नहीं।“
”परसों दोनो टाईम?“
”जी कुछ नहीं।“
डॉ. प्रशांत ने गर्मी और भारी उमस में पसीना पौछते हुए कहा, ”क्*या करते हो?“
”जी कुछ नहीं।“
डॉ. ने आश्*चर्य से प्रतिप्रश्*न किया, ”गुजारा कैसे होता है?“
”साब, बहुत गरीब आदमी हूँ। जब से फसल कटाई के लिए मशीनें आई हैं, भूखे मरने की नौबत आ गई है।“
डॉ. प्रशांत ने उसका मर्ज ज्ञात कर लिया था। उन्*होंने कम्*पाउंडर को पचास रूपये का नोट देते हुए कहा, ”इसे ले जाओ भरपेट खाना खिलाओ, इसे दवा की नहीं भोजन की जरूरत है।“
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !!
दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !!
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