06-11-2014, 02:55 PM
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#1007
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by rajnish manga
हमारी अर्जियां क्योंकर नहीं उड़ती हवाओं में
नहीं रख पाये हम चांदी का पेपरवेट क्या कहिये
वे नेता पुत्र थे खिड़की से भीतर हो गए दाखिल
हमारे वास्ते हैं बंद सारे गेट क्या कहिये
(प्रदीप चौबे)
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ये दिल तेरी चाहत का तलबगार बहुत है!
तेरी सूरत न देखें , तो दिखाई कुछ नहीं देता,,
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